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Saturday, April 28, 2012

Murli 28 April


[28-04-2012]

मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - 21 जन्मों की राजाई लेनी है तो ज्ञान धन का दान करो, धारणा कर फिर दूसरों को भी कराओ''
प्रश्न :- चलते-चलते ग्रहचारी बैठने का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर: श्रीमत पर पूरा नहीं चलते इसलिए ग्रहचारी बैठ जाती है। अगर निश्चयबुद्धि हो एक की मत पर सदा चलते रहे तो ग्रहचारी बैठ नहीं सकती, सदा कल्याण होता रहे। देरी से आने वाले भी बहुत आगे जा सकते हैं। सेकेण्ड की बाजी है। बाबा का बने तो हकदार बनें। सुख घनेरे का वर्सा मिल जायेगा। परन्तु श्रीमत पर सदा चलते रहें।
गीत्:- तू प्यार का सागर है..... 
धारणा के लिए मुख्य सार: 
1) श्रीमत पर चलकर अपने ऊपर आपेही दया करनी है। सर्वोदया बन पतित दुनिया को पावन बनाना है।
2) अमृतवेले रूहानी धन्धा कर कमाई जमा करनी है। विचार सागर मंथन करना है। देही-अभिमानी बनने की मेहनत जरूर करनी है।
वरदान: उमंग-उत्साह के आधार पर सदा उड़ती कला का अनुभव करने वाले हिम्मतवान भव
उड़ती कला का अनुभव करने के लिए हिम्मत और उमंग-उत्साह के पंख चाहिए। किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए उमंग-उत्साह बहुत जरूरी है। अगर उमंग-उत्साह नहीं तो कार्य सफल नहीं हो सकता क्योंकि उमंग-उत्साह नहीं तो थकावट होगी और थका हुआ कभी सफल नहीं होगा इसलिए हिम्मतवान बन उमंग और उत्साह के आधार पर उड़ते रहो तो मंजिल पर पहुंच जायेंगे।
स्लोगन: दुआयें दो और दुआयें लो यही श्रेष्ठ पुरूषार्थ है।

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