मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - श्रीमत पर चलकर अपने कर्मों को सुधारो, विकर्मों को भस्म करो, माला का दाना बनना है तो एक बाप के सिवाए दूसरा कोई याद न आये''
प्रश्न :- किन बच्चों की रक्षा बाप स्वत: करता है?
उत्तर: जो जितना सफाई से चलते हैं, बाप से सदा सच्चे रहते हैं, उनकी रक्षा स्वत: होती रहती है। झूठा चलने वालों की रक्षा हो नहीं सकती। माया उन्हें बहुत खींचती रहती है। उनके लिए फिर सजा कायम हो जाती है।
प्रश्न :- बच्चे रूहानी सर्जन से अपनी बीमारी छिपाते क्यों हैं?
उत्तर:- क्योंकि उन्हें अपनी इज्जत का डर रहता है। जानते भी हैं माया ने हमें धोखा दिया है। ऑखे क्रिमिनल हो गई हैं फिर भी बाप से छिपा लेते हैं। बाबा कहते हैं बच्चे जितना तुम छिपायेंगे उतना नीचे गिरते जायेंगे। माया खा लेगी। फिर पढ़ाई छूट जायेगी, इसलिए बहुत खबरदार रहना। मनमत वा आसुरी मत पर नहीं चलना।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप समान नम्रता का गुण धारण करना है। किसी को भी कांटा नहीं चुभाना है। फूल बन खुशबू देनी है।
2) सच्चाई का गुण धारण कर सर्जन से कोई भी बात छिपानी नहीं है। पढ़ाई किसी भी हालत में नहीं छोड़नी है। आज्ञाकारी बनना है।
वरदान: एक की याद में मन को एकाग्र कर मन्मनाभव रहने वाले एवररेडी सम्पूर्ण भव
सदैव स्मृति में रखो कि हर समय एवररेडी रहना है। किसी भी समय कोई भी परिस्थिति आ जाए लेकिन हम एवररेडी रहेंगे। कल भी विनाश हो जाए तो हम तैयार हैं। एवररेडी अर्थात् सम्पूर्ण। सम्पूर्ण बनने के लिए एक बाप दूसरा न कोई-यह तैयारी चाहिए। मन सदा एक की तरफ मन्मनाभव है तो एवररेडी बन जायेंगे। एवररेडी होकर सेवा करो तो सेवा में भी सहयोग मिलेगा, सफलता भी मिलेगी।
स्लोगन: बाप की हजार गुणा मदद के पात्र बनना है तो हिम्मत के कदम आगे बढ़ाओ।
प्रश्न :- किन बच्चों की रक्षा बाप स्वत: करता है?
उत्तर: जो जितना सफाई से चलते हैं, बाप से सदा सच्चे रहते हैं, उनकी रक्षा स्वत: होती रहती है। झूठा चलने वालों की रक्षा हो नहीं सकती। माया उन्हें बहुत खींचती रहती है। उनके लिए फिर सजा कायम हो जाती है।
प्रश्न :- बच्चे रूहानी सर्जन से अपनी बीमारी छिपाते क्यों हैं?
उत्तर:- क्योंकि उन्हें अपनी इज्जत का डर रहता है। जानते भी हैं माया ने हमें धोखा दिया है। ऑखे क्रिमिनल हो गई हैं फिर भी बाप से छिपा लेते हैं। बाबा कहते हैं बच्चे जितना तुम छिपायेंगे उतना नीचे गिरते जायेंगे। माया खा लेगी। फिर पढ़ाई छूट जायेगी, इसलिए बहुत खबरदार रहना। मनमत वा आसुरी मत पर नहीं चलना।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप समान नम्रता का गुण धारण करना है। किसी को भी कांटा नहीं चुभाना है। फूल बन खुशबू देनी है।
2) सच्चाई का गुण धारण कर सर्जन से कोई भी बात छिपानी नहीं है। पढ़ाई किसी भी हालत में नहीं छोड़नी है। आज्ञाकारी बनना है।
वरदान: एक की याद में मन को एकाग्र कर मन्मनाभव रहने वाले एवररेडी सम्पूर्ण भव
सदैव स्मृति में रखो कि हर समय एवररेडी रहना है। किसी भी समय कोई भी परिस्थिति आ जाए लेकिन हम एवररेडी रहेंगे। कल भी विनाश हो जाए तो हम तैयार हैं। एवररेडी अर्थात् सम्पूर्ण। सम्पूर्ण बनने के लिए एक बाप दूसरा न कोई-यह तैयारी चाहिए। मन सदा एक की तरफ मन्मनाभव है तो एवररेडी बन जायेंगे। एवररेडी होकर सेवा करो तो सेवा में भी सहयोग मिलेगा, सफलता भी मिलेगी।
स्लोगन: बाप की हजार गुणा मदद के पात्र बनना है तो हिम्मत के कदम आगे बढ़ाओ।
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