मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - अब वापिस घर चलना है इसलिए देह का भान छोड़ते जाओ, मैं इतना अच्छा हूँ, धनवान हूँ, यह सब छोड़ अपने को आत्मा समझो''
प्रश्न :- किस निश्चय वा धारणा के आधार पर तुम बच्चे अपनी बहुत ऊंची तकदीर बना सकते हो?
उत्तर: पहला निश्चय चाहिए कि हम आत्मा हैं। अभी हमें शरीर छोड़कर वापिस घर जाना है, इसलिए इस दुनिया से दिल नहीं लगानी है। 2. हमको पढ़ाने वाला और साथ ले जाने वाला शिवबाबा है, उनकी श्रीमत पर हमें चलना है। श्रीमत पर चल अपना वा अपने मित्र सम्बन्धियों का कल्याण करना है। जो बच्चे श्रीमत पर नहीं चलते या जिन्हें पढ़ाने वाले बाप में निश्चय नहीं वह कोई काम के नहीं। वह चलते-चलते गुम हो जाते हैं। ऊंच तकदीर बना नहीं सकते।
गीत:- ओम् नमो शिवाए....
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप के साथ सदा सच्चा रहना है, कुछ भी छिपाना नहीं है। बहुत-बहुत रॉयल्टी और समझदारी से चलना है।
2) 21 जन्मों के लिए हर एक को जीयदान देने की सेवा कर पुण्य आत्मा बनना है। आत्मा रूपी सुई पर जो कट चढ़ी हुई है। उसे याद की यात्रा में रह उतारना है।
वरदान: याद और सेवा द्वारा अपने भाग्य की रेखा श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनाने वाले भाग्यवान भव
ब्राह्मणों की जन्म-पत्री में तीनों ही काल अच्छे से अच्छे हैं। जो हुआ वह भी अच्छा और जो हो रहा है वो और अच्छा और जो होने वाला है वह बहुत-बहुत अच्छा। सभी के मस्तक पर श्रेष्ठ तकदीर की लकीर खींची हुई है, सिर्फ याद और सेवा में सदा बिजी रहो। यह दोनों ऐसे नेचुरल हों जैसे शरीर में श्वास नेचरल है। भाग्य विधाता बाप ने याद और सेवा की यह विधि ऐसी दी है जिससे जो जितना चाहे उतना अपना श्रेष्ठ भाग्य बना सकते हैं। स्लोगन: सन्तुष्टता की सीट पर बैठकर परिस्थितियों का खेल देखना ही सन्तुष्टमणि बनना है।
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