मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - योगबल से घाटे के खाते को चुक्तू कर, सुख का खाता जमा करो, व्यापारी बन अपना
पूरा हिसाब निकालो''
प्रश्न :- तुम बच्चों ने बाप से कौन सी प्रतिज्ञा की है, उस प्रतिज्ञा को निभाने का सहज साधन क्या है?
उत्तर: तुमने प्रतिज्ञा की है - मेरा तो एक शिवबाबा, दूसरा न कोई... भक्ति में भी कहते थे - बाबा जब आप आयेंगे
तो हम और संग तोड़ एक आप से जोड़ेंगे। अब बाबा कहते हैं बच्चे देह सहित देह के सब सम्बन्धों को बुद्धि से
त्यागकर एक मुझे याद करो। इस पुराने शरीर से भी दिल हटा दो, परन्तु इसमें मेहनत है। इस प्रतिज्ञा को निभाने
के लिए सवेरे-सवेरे उठ अपने आपसे बातें करो वा ख्याल करो - अब यह नाटक पूरा होता है।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) भोजन करते समय याद में रहना है, फालतू वार्तालाप नहीं करनी है। याद से पापों का खाता चुक्तू करना है।
2) दिन में शरीर निर्वाह अर्थ कर्म कर, रात को जाग अपने आपसे बातें करनी हैं। ख्याल करना है कि यह नाटक
पूरा हुआ, हम अब वापिस जाते हैं इसलिए जीते जी ममत्व मिटाना है।
वरदान: महानता के साथ निर्माणता को धारण कर सर्व का मान प्राप्त करने वाले सुखदाई भव
महानता की निशानी निर्माणता है। जितना महान उतना निर्माण क्योंकि सदा भरपूर है। जैसे वृक्ष जितना
भरपूर होगा उतना झुका हुआ होगा। तो निर्माणता ही सेवा करती है। और जो निर्माण रहता है वह सर्व द्वारा
मान पाता है। जो अभिमान में रहता है उसको कोई मान नहीं देता, उससे दूर भागते हैं। जो निर्माण है वह
जहाँ जायेगा, जो भी करेगा वह सुखदायी होगा। उससे सभी सुख की अनुभूति करेंगे।
स्लोगन: उदासी को तलाक देने के लिए खुशियों का खजाना सदा साथ रखो।
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