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Saturday, April 21, 2012

Muril 21 April


[21-04-2012]

मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - अपनी अवस्था अच्छी बनानी है तो सवेरे-सवेरे उठ एकान्त में बैठ विचार करो कि हम आत्मा हैं, हमें अब वापिस जाना है, यह नाटक पूरा हुआ''
प्रश्न :- पूरा-पूरा बलि चढ़ने का अर्थ क्या है?
उत्तर: पूरा बलि चढ़ना माना बुद्धि का योग एक तरफ रहे। बच्चे आदि कोई देहधारी याद न आयें। देह का भान टूट जाए। ऐसा जो पूरा बलि चढ़ते हैं उन्हें 21 जन्मों का वर्सा बाप से मिलता है। जो एक दो के नाम रूप में लट्टू होते हैं वह बाप का और अपना नाम बदनाम करते हैं।
प्रश्न :- बाप सभी बच्चों पर कौन सी कृपा करते हैं?
उत्तर:- कौड़ी से हीरे जैसा बनाने की कृपा बाप करते हैं। जो बच्चे कदम-कदम पर राय लेते हैं, कुछ छिपाते नहीं, उन पर स्वत: कृपा हो जाती है।
गीत:- किसने यह सब खेल रचाया...... 
धारणा के लिए मुख्य सार: 
1) फुल पास होने के लिए जो भी खामियाँ हैं, विकारों का अंश है उसे समाप्त कर देना है। किसी भी बात का अहंकार नहीं रखना है।
2) दृष्टि बहुत पवित्र शुद्ध बनानी है। कभी भी किसी देहधारी के पीछे लटकना नहीं, पूरा आत्म-अभिमानी बनना है।
वरदान: संगमयुग पर हर समय, हर संकल्प, हर सेकण्ड को समर्थ बनाने वाले ज्ञान स्वरूप भव
ज्ञान सुनने और सुनाने के साथ-साथ ज्ञान को स्वरूप में लाओ। ज्ञान स्वरूप वह है जिसका हर संकल्प, बोल और कर्म समर्थ हो। सबसे मुख्य बात - संकल्प रूपी बीज को समर्थ बनाना है। यदि संकल्प रूपी बीज समर्थ है तो वाणी, कर्म, सम्बन्ध सहज ही समर्थ हो जाता है। ज्ञान स्वरूप माना हर समय, हर संकल्प, हर सेकण्ड समर्थ हो। जैसे प्रकाश है तो अन्धियारा नहीं होता। ऐसे समर्थ है तो व्यर्थ हो नहीं सकता।
लोगन:- सेवा में सदा जी हाज़िर करना-यही प्यार का सच्चा सबूत है। 

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