24-4-12:
मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - तुम दु:ख हर्ता सुख कर्ता बाप के बच्चे हो, तुम्हें मन्सा-वाचा-कर्मणा
किसी को भी दु:ख नहीं देना है, सबको सुख दो''
प्रश्न :- तुम बच्चे मनुष्य से देवता बनते हो इसलिए तुम्हारी मुख्य धारणा क्या होनी चाहिए?
उत्तर: तुम्हारे मुख से जो भी बोल निकलें - वह एक-एक बोल मनुष्यों को हीरे जैसा बना दें। तुम्हें
बहुत मीठा बनना है, सबको सुख देना है। किसी को भी दु:ख देने का ख्याल न आये। तुम अभी ऐसी
सतयुगी स्वर्ग की दुनिया में जाते हो जहाँ सदा सुख ही सुख है। दु:ख का नाम निशान नहीं। तो
तुम्हें बाप की श्रीमत मिली है बच्चे, बाप समान दु:ख हर्ता सुख कर्ता बनो। तुम्हारा धन्धा ही है
सबके दु:ख हरकर सुख देना।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) मैं आत्मा इस शरीर रूपी पुतले को नचा रही हूँ। मैं इससे अलग हूँ, ऐसा अभ्यास करते-करते
देही-अभिमानी बनना है।
2) मुरली कभी भी मिस नहीं करनी है, रेग्युलर बनना है। पढ़ाई में बहुत-बहुत एक्यूरेट रहना है।
वरदान: ब्राह्मण जीवन में याद और सेवा के आधार द्वारा शक्तिशाली बनने वाले मायाजीत भव
ब्राह्मण जीवन का आधार है याद और सेवा। अगर याद और सेवा का आधार कमजोर है तो ब्राह्मण
जीवन कभी तेज चलेगा, कभी ढीला चलेगा। कोई सहयोग मिले, कोई साथ मिले, कोई सरकमस्टांस
मिले तो चलेंगे नहीं तो ढीले हो जायेंगे इसलिए याद और सेवा दोनों में तीव्रगति चाहिए। याद और
नि:स्वार्थ सेवा है तो मायाजीत बनना बहुत सहज है फिर हर कर्म में विजय दिखाई देगी।
स्लोगन: विघ्न-विनाशक वही बनता है जो सर्व शक्तियों से सम्पन्न है।
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