मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - पुरानी देह और देह के सम्बन्धी जो एक दो को दु:ख देने वाले हैं, उन सबको भूल एक बाप को याद करो, श्रीमत पर चलो''
प्रश्न :- बाप के साथ-साथ वापिस चलने के लिए बाप की किस श्रीमत का पालन करना पड़े?
उत्तर: बाप की श्रीमत है बच्चे पवित्र बनो, ज्ञान की पूरी धारणा कर अपनी कर्मातीत अवस्था बनाओ तब साथ-साथ वापिस चल सकेंगे। कर्मातीत नहीं बने तो बीच में रुक कर सजायें खानी पड़ेंगी। कयामत के समय कई आत्मायें शरीर छोड़ भटकती हैं, साथ में जाने के बजाए यहाँ ही पहले सज़ा भोग हिसाब चुक्तू करती हैं इसलिए बाप की श्रीमत है बच्चे सिर पर जो पापों का बोझा है, पुराने हिसाब-किताब हैं, सब योगबल से भस्म करो।
गीत:- ओ दूर के मुसाफिर....
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) जीवनमुक्त पद पाने का पुरुषार्थ करना है। जैसे माँ बाप महाराजा महारानी बनते हैं, ऐसे फालो कर तख्तनशीन बनना है। सेन्सीबुल बन पढ़ाई अच्छी रीति पढ़नी है।
2) बाप से सच्ची प्रीत रखनी है। रहमदिल बन अन्धों को रास्ता दिखाना है। बाप से श्रीमत ले पाप आत्मा बनने से बचना और बचाना है।
वरदान: मास्टर दाता बन खुशियों का खजाना बांटने वाले सर्व की दुआओं के पात्र भव
वर्तमान समय सभी को अविनाशी खुशी की आवश्यकता है, सब खुशी के भिखारी हैं, आप दाता के बच्चे हो। दाता के बच्चों का काम है देना। जो भी संबंध-सम्पर्क में आये उसे खुशी देते जाओ। कोई खाली न जाये, इतना भरपूर रहो। हर समय देखो कि मास्टर दाता बनकर कुछ दे रहा हूँ या सिर्फ अपने में ही खुश हूँ! जितना दूसरों को देंगे उतना सबकी दुआओं के पात्र बनेंगे और यह दुआयें सहज पुरूषार्थी बना देंगी।
स्लोगन: संगम की प्राप्तियों को याद रखो तो दु:ख व परेशानी की बातें याद नहीं आयेंगी।
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