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Monday, December 26, 2011

Vichar Sagar Manathan 26 Dec

ॐ शान्ति दिव्य फरिश्ते !!!
विचार सागर मंथन: दिसंबर २६, २०११ 
बाबा की महिमा: 
परमपिता परमात्मा शिव बाबा हैं...मेरा बाबा...प्यारा बाबा...मीठा बाबा...दयालु बाबा...कृपालु बाबा...सत बाप...सत टीचर...सत गुरु...दिव्य दृष्टि दाता...नॉलेज फुल... रूहानी बाप...अशरीरी, विचित्र...रूहानी सर्जन...रूहानी पंडा...बीज...बिंदी...गाइड..लिब्रेटार...
स्वमान और आत्मा अभ्यास: 
१. हम अशरीरी आत्माएँ, रूहानी यात्रा के रूहानी यात्री, रूहानी सर्जन बाप से याद व योग सीखनेवाले, २१ जन्मों के लिए निरोगी, एवर हेल्दी, एवर वेल्दी रूहानी पंडे, राज्य भाग्य विश्व की बादशाही वाले हैं...

२. अंत मति सो गति....मनमनभव ! योगी भव! होली भव! हम आत्म अभिमानी आत्माएँ, चलते फिरते बुद्धि में बाप की निर्विघ्न याद रखनेवाले, हर सेकण्ड बाप के साथ अटूट कनेक्शन जुटानेवाले, पाप भस्म करनेवाले, ईश्वरीय शक्ति व करेंट से भरपूर, पवित्र, पावन, सतोप्रधान २४ कैरेट सोना, मायाजीत हैं, विकर्माजीत हैं, विजयी हैं.....अच्छे बुरे कर्म करनेवालों के प्रभाव से मुक्त, श्रेष्ठ तपस्वी हैं...शांतिधाम निवासी हैं...अमरलोक निवासी हैं...
३. हम त्रिकालदर्शी आत्माएँ, मीठे, रॉयल चाल चलन चेहरे वाले ज्ञान धारण कर दिव्य गुणधारी सेन्सिबुल हैं... रूहानी बाप से रूहानी ज्ञान सुनकर ज्ञान की भूं - भूं कर आप समान बनानेवाले, मनुष्य से देवता बनानेवाले, रूहानी पंडे हैं....रूहानी बाप के मददगार, रूहानी स्वीट चिल्ड्रेन हैं...
रसीले पायंट्स:
a. रूह से रूहरीहान अर्थार्त वार्तालाप तब हो जब दोनों को शरीर हो...
b. वह कहेंगे जीव आत्माओं की यात्रा और यह है आत्माओं की यात्रा...
c. हम जब योगबल से विश्व के मालिक बनते हैं तो क्या योगबल से बच्चा नहीं पैदा कर सकेत? पपीते का झाड़, मोर डेल का भी मिसाल है..

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