Popular Posts

Thursday, December 1, 2011

Murli 1.12.2011


मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - संगमयुग पुरुषोत्तम युग है, यहाँ की पढ़ाई से 21 जन्मों के लिए तुम उत्तम ते उत्तम पुरुष बन सकते हो'' 
प्रश्न: आन्तरिक खुशी में रहने के लिए कौन सा निश्चय पक्का होना चाहिए? 
उत्तर: पहला-पहला निश्चय चाहिए कि हम विश्व के मालिक थे, बहुत धनवान थे। हमने ही पूरे 84 जन्म लिए हैं। अब बाबा हमको फिर से विश्व की बादशाही देने आये हैं। अभी हम त्रिकालदर्शी बने हैं। रचता बाप द्वारा रचना के आदि-मध्य-अन्त को हमने जाना है। ऐसा निश्चय हो तब आन्तरिक खुशी रहे। 
गीत:- नयन हीन को राह दिखाओ प्रभू...... 


धारणा के लिए मुख्य सार: 
1) अपनी ऊंची प्रालब्ध बनाने के लिए पढ़ाई अच्छी तरह पढ़नी है। कोई भी बुरा काम नहीं करना है। 
2) अपना खान-पान बहुत शुद्ध रखना है। देवताओं को जो चीज़ स्वीकार कराते हैं, वही खानी है। पुरुषोत्तम बनने का पुरुषार्थ करना है। 
वरदान: अपने स्व-स्वरूप और स्वदेश के स्वमान में स्थित रहने वाले मास्टर लिबरेटर भव 
आजकल के वातावरण में हर आत्मा किसी न किसी बात के बंधन वश है। कोई तन के दु:ख के वशीभूत है, कोई सम्बन्ध के, कोई इच्छाओं के, कोई अपने दुखदाई संस्कार-स्वभाव के, कोई प्रभू प्राप्ति न मिलने के कारण, पुकारने चिल्लाने के दु:ख के वशीभूत...ऐसी दुख-अशान्ति के वश आत्मायें अपने को लिबरेट करना चाहती हैं तो उन्हें दु:खमय जीवन से लिबरेट करने के लिए अपने स्व-स्वरूप और स्वदेश के स्वमान में स्थित रह, रहमदिल बन मास्टर लिबरेटर बनो। 
स्लोगन: सदा अचल अडोल रहने के लिए एकरस स्थिति के आसन पर विराजमान रहो। 

No comments:

Post a Comment