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Sunday, December 18, 2011

Vichar Sagar Manthan

ॐ शान्ति दिव्य फरिश्ते!!!
विचार सागर मंथन: दिसंबर १७ , २०११ 
बाबा की महिमा: 
परमपिता परमात्मा शिव बाबा हैं...मेरा बाबा...प्यारा बाबा...मीठा बाबा...दयालु बाबा...कृपालु बाबा...सत बाप...सत टीचर...सत गुरु.....गॉड फादर... पतित पावन... ज्ञान का सागर...निराकार बिंदी...
स्वमान और आत्मा अभ्यास: 
१. हम अशरीरी आत्माएँ, देही-अभिमानी, आत्म-अभिमानी, रूहानी- अभिमानी, परमात्म- अभिमानी परमात्म प्यारे, मनजीत, मायाजीत, प्रकृतिजीत, जगतजीत खुशी के फरिश्ते हैं...
२. हम निराकार बिंदी आत्माएँ, एक बाप को मामेकम याद कर विकर्म विनाश करनेवाले, बड़ों को रीगार्ड और छोटों को प्यार देनेवाले, श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ मत पर चलनेवाले, अच्छी धारणा और कमाई वाले सच्चे दिलवाले बच्चे हैं... अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलनेवाले, गोपी वल्लभ के गोप-गोपियाँ हैं...
३. हम अविनाशी आत्माएँ, देह सहित देह के सर्व सम्पर्क, सम्बन्ध, वस्तु, वैभव से बंधन तोड़, रचयिता और रचना को जाननेवाले नशटोमोहा हैं... एकान्त में बैठ, अपने को छोटी आत्मा समझ और बाप को भी बिंदी समझ याद करनेवाले, मनमनाभव होकर २१ जन्मों के लिए स्वर्ग की बादशाही पानेवाले, गॉड-गॉडेज हैं....विश्व के मालिक हैं...



४. हम छोटी स्टार मिसल आत्माएँ, बाप के साथ हैं, बाप के समीप हैं, बाप के सम्मुख हैं, बाप समान हैं, और सेफ हैं... ज्ञान अमृत पीने और पिलानेवाले, मुक्ति की युक्ति औरों को बतानेवाले ड्रामा के मुख्य सर्विसेबुल एक्टर हैं...
५. हम सम्पूर्ण सत्य और पवित्र आत्माएँ, सवेरे से रात तक याद की यात्रा में रहनेवाले, बीच बीच में ट्रैफिक कंट्रोल करनेवाले, अपने शान्त स्वरूप से अव्यक्त वातावरण बनाकर इशारों से समझानेवाले और साक्षात्कार करानेवाले साक्षात्कार मूर्त हैं...

रसीले पायंट्स:
a. आत्मा भी सत्य, चैतन्य है तो परमपिता परमात्मा भी सत है, चैतन्य है...
b. आत्म-अभिमानी बनने की प्रेक्टिस करनी है; यही भारत का प्राचीन योग भी मशहूर है; यही गीता है...
c. बाप जो डायरेक्शन देते हैं, अगर कुछ उल्टा भी हो गया तो आपेही सुलटा बना देंगे; राय देंगे तो फिर ज़िम्मेवार भी हैं...
d. बाप एसे नहीं कहते की भक्ति छोड़ों; जब ज्ञान की पराकाष्ठा आएगी तो आपेही समझेंगे की यह भक्ति और यह ज्ञान है...
 

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