[17-12-2011]
मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - आत्म-अभिमानी बनने की प्रैक्टिस करो, जितना आत्म-अभिमानी बनेंगे उतना बाप से लव रहेगा''
प्रश्न: देही-अभिमानी बच्चों में कौन सा अक्ल सहज ही आ जाता है?
उत्तर: अपने से बड़ों का रिगार्ड कैसे रखें, यह अक्ल देही-अभिमानी बच्चों में आ जाता है। अभिमान तो एकदम मुर्दा बना देता है। बाप को याद ही नहीं कर सकते। अगर देही-अभिमानी रहें तो बहुत खुशी रहे, धारणा भी अच्छी हो। विकर्म भी विनाश हों और बड़ों का रिगार्ड भी रखें। जो सच्ची दिल वाले हैं वे समझते हैं कि हम कितना समय देही-अभिमानी रह बाप को याद करते हैं।
गीत:- न वह हमसे जुदा होंगे...
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप जो राय देते हैं उसे शिवबाबा की श्रीमत समझ चलना है। ज्ञान अमृत पीना और पिलाना है।
2) सबको रिगार्ड देते हुए सर्विस पर तत्पर रहना है। देह-अभिमान छोड़ देही-अभिमानी रहने की प्रैक्टिस करनी है।
वरदान: अपने अव्यक्त शान्त स्वरूप द्वारा वातावरण को अव्यक्त बनाने वाले साक्षात मूर्त भव
जैसे सेवाओं के और प्रोग्राम बनाते हो ऐसे सवेरे से रात तक याद की यात्रा में कैसे और कब रहेंगे यह भी प्रोग्राम बनाओ और बीच-बीच में दो तीन मिनट के लिए संकल्पों की ट्रैफिक को स्टॉप कर लो, जब कोई व्यक्त भाव में ज्यादा दिखाई दे तो उनको बिना कहे अपना अव्यक्ति शान्त रूप ऐसा धारण करो जो वह भी इशारे से समझ जाये, इससे वातावरण अव्यक्त रहेगा। अनोखापन दिखाई देगा और आप साक्षात्कार कराने वाले साक्षात मूर्त बन जायेंगे।
स्लोगन: सम्पूर्ण सत्यता ही पवित्रता का आधार है।
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