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Sunday, May 6, 2012

Murli 06 April


06-05-12 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज:14-07-74 मधुबन 
बाप समान सफलता-मूर्त बनने का साधन सर्व के प्रति शुभ भावना 
वरदान: पुराने संसार और संस्कारों की आकर्षण से जीते जी मरने वाले यथार्थ मरजीवा भव 
यथार्थ जीते जी मरना अर्थात् सदा के लिए पुराने संसार वा पुराने संस्कारों से संकल्प और स्वप्न में भी मरना। मरना माना परिवर्तन होना। उन्हें कोई भी आकर्षण अपनी ओर आकर्षित कर नहीं सकती। वह कभी नहीं कह सकते कि क्या करें, चाहते नहीं थे लेकिन हो गया...कई बच्चे जीते जी मरकर फिर जिंदा हो जाते हैं। रावण का एक सिर खत्म करते तो दूसरा आ जाता, लेकिन फाउन्डेशन को ही खत्म कर दो तो रूप बदल करके माया वार नहीं करेगी। 
स्लोगन: सबसे लकी वो हैं जो याद और सेवा में सदा बिजी रहते हैं। 

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