01-05-12 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''बापदादा'' मधुबन
मुरली सार : ''मीठे बच्चे - तुम ईश्वरीय फैमिली के हो, ईश्वरीय फैमिली का लॉ (नियम) है - भाई-भाई हो रहना, ब्राह्मण कुल का लॉ है भाई-बहन हो रहना इसलिए विकार की दृष्टि हो नहीं सकती''
प्रश्न: यह संगमयुग कल्याणकारी युग है - कैसे?
उत्तर: इसी समय बाप अपने लाडले बच्चों के सम्मुख आते हैं और बाप, टीचर, सतगुरू का पार्ट अभी ही चलता है। यही कल्याणकारी समय है जब तुम बच्चे बाप की न्यारी मत, जो नर्क को स्वर्ग बनाने की वा सबको सद्गति देने की है, उस श्रीमत को जानते और उस पर चलते हो।
प्रश्न:- तुम्हारा सन्यास सतोप्रधान सन्यास है - कैसे?
उत्तर:- तुम बुद्धि से इस सारी पुरानी दुनिया को भूलते हो। तुम इस सन्यास में सिर्फ बाप और वर्से को याद करते, पवित्र बनते और परहेज रखते, जिससे देवता बन जाते हो। उनका सन्यास हद का है, बेहद का नहीं।
गीत:- भोलेनाथ से निराला...
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) देह-अहंकार को छोड़ देही-अभिमानी बनना है। अशरीरी बनने का अभ्यास करना है।
2) ड्रामा को यथार्थ रीति समझकर पुरूषार्थ करना है। ड्रामा में होगा तो करेंगे, ऐसा सोच कर पुरूषार्थ हीन नहीं बनना है।
वरदान: सर्व प्राप्तियों को सामने रख श्रेष्ठ शान में रहने वाले मास्टर सर्वशक्तिमान् भव
हम सर्व श्रेष्ठ आत्मायें हैं, ऊंचे ते ऊंचे भगवान के बच्चे हैं-यह शान सर्वश्रेष्ठ शान है, जो इस श्रेष्ठ शान की सीट पर रहते हैं वह कभी भी परेशान नहीं हो सकते। देवताई शान से भी ऊंचा ये ब्राह्मणों का शान है। सर्व प्राप्तियों की लिस्ट सामने रखो तो अपना श्रेष्ठ शान सदा स्मृति में रहेगा और यही गीत गाते रहेंगे कि पाना था वो पा लिया...सर्व प्रापितयों की स्मृति से मास्टर सर्वशक्तिमान् की स्थिति सहज बन जायेगी।
स्लोगन: योगी और पवित्र जीवन ही सर्व प्राप्तियों का आधार है।
मुरली सार : ''मीठे बच्चे - तुम ईश्वरीय फैमिली के हो, ईश्वरीय फैमिली का लॉ (नियम) है - भाई-भाई हो रहना, ब्राह्मण कुल का लॉ है भाई-बहन हो रहना इसलिए विकार की दृष्टि हो नहीं सकती''
प्रश्न: यह संगमयुग कल्याणकारी युग है - कैसे?
उत्तर: इसी समय बाप अपने लाडले बच्चों के सम्मुख आते हैं और बाप, टीचर, सतगुरू का पार्ट अभी ही चलता है। यही कल्याणकारी समय है जब तुम बच्चे बाप की न्यारी मत, जो नर्क को स्वर्ग बनाने की वा सबको सद्गति देने की है, उस श्रीमत को जानते और उस पर चलते हो।
प्रश्न:- तुम्हारा सन्यास सतोप्रधान सन्यास है - कैसे?
उत्तर:- तुम बुद्धि से इस सारी पुरानी दुनिया को भूलते हो। तुम इस सन्यास में सिर्फ बाप और वर्से को याद करते, पवित्र बनते और परहेज रखते, जिससे देवता बन जाते हो। उनका सन्यास हद का है, बेहद का नहीं।
गीत:- भोलेनाथ से निराला...
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) देह-अहंकार को छोड़ देही-अभिमानी बनना है। अशरीरी बनने का अभ्यास करना है।
2) ड्रामा को यथार्थ रीति समझकर पुरूषार्थ करना है। ड्रामा में होगा तो करेंगे, ऐसा सोच कर पुरूषार्थ हीन नहीं बनना है।
वरदान: सर्व प्राप्तियों को सामने रख श्रेष्ठ शान में रहने वाले मास्टर सर्वशक्तिमान् भव
हम सर्व श्रेष्ठ आत्मायें हैं, ऊंचे ते ऊंचे भगवान के बच्चे हैं-यह शान सर्वश्रेष्ठ शान है, जो इस श्रेष्ठ शान की सीट पर रहते हैं वह कभी भी परेशान नहीं हो सकते। देवताई शान से भी ऊंचा ये ब्राह्मणों का शान है। सर्व प्राप्तियों की लिस्ट सामने रखो तो अपना श्रेष्ठ शान सदा स्मृति में रहेगा और यही गीत गाते रहेंगे कि पाना था वो पा लिया...सर्व प्रापितयों की स्मृति से मास्टर सर्वशक्तिमान् की स्थिति सहज बन जायेगी।
स्लोगन: योगी और पवित्र जीवन ही सर्व प्राप्तियों का आधार है।
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