मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - माया की बीमारी से छूटने के लिए ज्ञान और योग का एपिल (सेब) रोज़ खाते रहो।'' प्रश्न: कर्मातीत अवस्था में जाने का पुरूषार्थ क्या है? उत्तर: ऐसा अभ्यास करो जो बुद्धि में सिवाए बाप के और कोई की याद न रहे। अन्त मती सो गति... जब ऐसी अवस्था हो जो बुद्धि में कोई भी याद न रहे तब सदा हर्षित भीरहेंगे और कर्मातीत अवस्था को भी पा लेंगे। तुम्हारा पुरूषार्थ ही है आत्म-अभिमानी बनने का। आत्मा, आत्मा को देखे, आत्मा से बात करे तो खुशी होती रहेगी। स्थितिअचल हो जायेगी।
गीत:- तुम्ही हो माता... धारणा के लिए मुख्य सार:
1) सदा हर्षित रहने के लिए आत्म-अभिमानी बनना है। हम आत्मा भाई-भाई हैं, यह दृष्टि पक्की करनी है।
2) रूहानी सोशल वर्कर बन आत्मा को ज्ञान का इन्जेक्शन लगाना है। सबकी रूहानी सेवा करनी है। वरदान:
ड्रामा में समस्याओं को खेल समझ एक्यूरेट पार्ट बजाने वाले हीरो पार्टधारी भव
हीरो पार्टधारी उसे कहा जाता - जिसकी कोई भी एक्ट साधारण न हो, हर पार्ट एक्यूरेट हो। कितनी भी समस्यायें हो, कैसी भी परिस्थितियां हों किसी के भी अधीन नहीं,अधिकारी बन समस्याओं को ऐसे पार करें जैसे खेल-खेल में पार कर रहे हैं। खेल में सदा खुशी रहती है, चाहे कैसा भी खेल हो, बाहर से रोने का भी पार्ट हो लेकिन अन्दर रहेकि यह सब बेहद का खेल है। खेल समझने से बड़ी समस्या भी हल्की बन जायेगी। स्लोगन: जो सदा प्रसन्न रहते हैं वही प्रशन्सा के पात्र हैं।
गीत:- तुम्ही हो माता... धारणा के लिए मुख्य सार:
1) सदा हर्षित रहने के लिए आत्म-अभिमानी बनना है। हम आत्मा भाई-भाई हैं, यह दृष्टि पक्की करनी है।
2) रूहानी सोशल वर्कर बन आत्मा को ज्ञान का इन्जेक्शन लगाना है। सबकी रूहानी सेवा करनी है। वरदान:
ड्रामा में समस्याओं को खेल समझ एक्यूरेट पार्ट बजाने वाले हीरो पार्टधारी भव
हीरो पार्टधारी उसे कहा जाता - जिसकी कोई भी एक्ट साधारण न हो, हर पार्ट एक्यूरेट हो। कितनी भी समस्यायें हो, कैसी भी परिस्थितियां हों किसी के भी अधीन नहीं,अधिकारी बन समस्याओं को ऐसे पार करें जैसे खेल-खेल में पार कर रहे हैं। खेल में सदा खुशी रहती है, चाहे कैसा भी खेल हो, बाहर से रोने का भी पार्ट हो लेकिन अन्दर रहेकि यह सब बेहद का खेल है। खेल समझने से बड़ी समस्या भी हल्की बन जायेगी। स्लोगन: जो सदा प्रसन्न रहते हैं वही प्रशन्सा के पात्र हैं।
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