
Wednesday, December 26, 2012
Wednesday, November 14, 2012
Tuesday, November 13, 2012
Thursday, November 1, 2012
Dearest Dadis, Nirwairbhai and the worldwide Brahmin family,
Dearest Dadis, Nirwairbhai and the worldwide Brahmin family,
Please accept heartfelt greetings of love and gratitude from the entire
New York family. We have felt the loving thoughts and powerful
vibrations of all of you over the past couple of days. It has been a
very good experience, preparing and facing the big storm that just swept
(and still sweeping through) through many parts of the East Coast of
USA. I must say that we have all felt Baba's hands of protection holding
us very tight even whilst witnessing the fierce dance of nature.
Please accept heartfelt greetings of love and gratitude from the entire
New York family. We have felt the loving thoughts and powerful
vibrations of all of you over the past couple of days. It has been a
very good experience, preparing and facing the big storm that just swept
(and still sweeping through) through many parts of the East Coast of
USA. I must say that we have all felt Baba's hands of protection holding
us very tight even whilst witnessing the fierce dance of nature.
Friday, October 12, 2012
Dadhichi Rushi
दधीचि ऋषि
प्राचीन काल में दधीचि नाम के एक महर्षि थे। उनकी पत्नी का नाम गभस्तिनी था। महर्षि वेद-शास्त्रों के पूर्ण ज्ञाता थे और स्वभाव के बड़े ही दयालु थे। अहंकार तो उन्हें छू तक नहीं गया था। वे सदा दूसरों का हित करना अपना परम धर्म समझते थे। उनके व्यवहार से उस वन के पशु-पक्षी तक संतुष्ट थे, जहाँ वे रहते थे। गंगा के तट पर ही उनका आश्रम था। जो भी अतिथि उनके आश्रम पर आता था, उसकी महर्षि और उनकी पत्नी श्रद्धा भाव से सेवा करते थे।
एक दिन की बात है, महर्षि के आश्रम पर रुद्र, आदित्य, अश्विनीकुमार, इंद्र, विष्णु यम और अग्नि आए। देवासुर संग्राम समाप्त हुआ था जिसमें देवताओं ने दैत्यों को परास्त कर दिया था। विजय के कारण सभी देवता हर्षित हो रहे थे। उन्होंने आकर यह प्रसन्नता-भरा समाचार महर्षि को सुनाया। महर्षि ने उक्त देवताओं का समुचित स्वागत किया और उनके आने का कारण पूछा।
देवताओं ने कहा, ‘‘ आप इस पृथ्वी के कल्पवृक्ष हैं। आप जैसे तपस्वी ऋषि की यदि हमारे ऊपर कृपा हो तो हमारे मार्ग में किसी प्रकार की कठिनाई उपस्थित नहीं हो सकती।"
‘‘हे मुनिश्रेष्ठ ! जीवित मनुष्यों के जीवन का इतना ही फल है कि तीर्थों में स्नान, समस्त प्राणियों पर दया और आप जैसे तपस्वी महर्षि के दर्शन करें। इस समय हम दैत्यों को परास्त करके आए हैं और इसके पश्चात् आपके दर्शन करके हमारी प्रसन्नता दूनी बढ़ गई है। अब हमारे पास ये अस्त्र-शस्त्र हैं। अब हम यदि इन्हें ले जाकर स्वर्ग में रख भी दें तो हमारे शत्रु किसी तरह पता लगाकर कभी भी इन्हें ले जा सकते हैं, इसलिए हमारा विचार इन अस्त्र-शस्त्रों को आपके आश्रम पर ही रखने का है।
एक दिन की बात है, महर्षि के आश्रम पर रुद्र, आदित्य, अश्विनीकुमार, इंद्र, विष्णु यम और अग्नि आए। देवासुर संग्राम समाप्त हुआ था जिसमें देवताओं ने दैत्यों को परास्त कर दिया था। विजय के कारण सभी देवता हर्षित हो रहे थे। उन्होंने आकर यह प्रसन्नता-भरा समाचार महर्षि को सुनाया। महर्षि ने उक्त देवताओं का समुचित स्वागत किया और उनके आने का कारण पूछा।
देवताओं ने कहा, ‘‘ आप इस पृथ्वी के कल्पवृक्ष हैं। आप जैसे तपस्वी ऋषि की यदि हमारे ऊपर कृपा हो तो हमारे मार्ग में किसी प्रकार की कठिनाई उपस्थित नहीं हो सकती।"
‘‘हे मुनिश्रेष्ठ ! जीवित मनुष्यों के जीवन का इतना ही फल है कि तीर्थों में स्नान, समस्त प्राणियों पर दया और आप जैसे तपस्वी महर्षि के दर्शन करें। इस समय हम दैत्यों को परास्त करके आए हैं और इसके पश्चात् आपके दर्शन करके हमारी प्रसन्नता दूनी बढ़ गई है। अब हमारे पास ये अस्त्र-शस्त्र हैं। अब हम यदि इन्हें ले जाकर स्वर्ग में रख भी दें तो हमारे शत्रु किसी तरह पता लगाकर कभी भी इन्हें ले जा सकते हैं, इसलिए हमारा विचार इन अस्त्र-शस्त्रों को आपके आश्रम पर ही रखने का है।
Monday, August 20, 2012
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